"मान्यवर कांशीराम साहब और पत्रकार
परिषद "
पत्रकार - कांशीरामजी से प्रश्न पुछा " आप
महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता मानते है
या नहीं मानते ?"
कांशीराम साहब - मोहनदास करमचंद
गांधीने जिसका भला किया होगा वह उन्हें
महात्मा माने या भगवान माने इसमें मुझे कोई
लेनादेना नहीं है । लेकिन जिस मोहनदास
करमचंद गांधी ने मेरे बहुजन समाज
का सत्यानाश ही सत्यानाश किया है इसे मै
कदापि महात्मा नहीं मानूंगा।"
पत्रकार - तो क्या आपकी सरकार केंद्र में आने
के बाद आप गांधीजी का सन्मान नहीं करेंगे ?
कांशीरामजी - " गांधी का सन्मान
तो उतना ही करूँगा, जितना सन्मान इन्होने
डॉ बाबासाहब आंबेडकर का किया है । और
इन्होने जितना अपमान डॉ बाबासाहब
आंबेडकर का किया है उससे दुगना अपमान मै
गांधी का करूँगा ।
पत्रकार - उन्होंने तो आंबेडकर के नाम
की यूनिवर्सिटी दी है और आप कहते है
की इन्होने आंबेडकर का सन्मान नहीं किया।
कांशीरामजी - कांग्रेसने सेंटर में आंबेडकर के
नाम से यूनिवर्सिटी दी है। लेकिन
महाराष्ट्र के लोग 18 साल से महाराष्ट्र के
मराठवाडा में डॉ बाबासाहब आंबेडकर के
नाम की यूनिवर्सिटी मांग रहे है, लेकिन
अभी तक नहीं दी गई है। यह आंबेडकर का 18
साल से हो रहा अपमान नहीं तो और क्या है।
इसीलिये मेरी सरकार अगर केंद में आती है
तो सबसे पहले गाँधी को " भारत रत्न "
की ख़िताब दूंगा जो की कॉंग्रेसने
गाँधीको अभी तक भारतरत्न का सन्मान
नहीं दिया है । और मनु, शंकराचार्य और
गाँधी के भारत के गावगाव में पुतले लगवाकर
उन पुतले के निचे लिखूंगा की, " यही वे तिन
चोर बदमाश है जिन्होंने बहुजन समाज
का सत्यानाश ही सत्यानाश किया है ।"
पत्रकार परिषद् में कांशीरामजी ने ऐसा कहते
ही हॉल में उपस्थित सभी पत्रकार गुस्से
उठकर खड़े हो गये और आगे के कोई भी प्रश्न न
पूछते हुए, चाय नाश्ता ना लेते हुए पत्रकार
परिषद में से उठकर चल दिए और इस
तरहा पत्रकार परिषद समाप्त हुई।
मान्यवर कांशी राम साहेब मानना था कि एम्. एल. ए., एम्. पी.
बनाना ज्यादा जरुरी नहीं है. बाबा साहेब आंबेडकर के मूवमेंट
को चलाना ज्यादा जरुरी है. अगर मूवमेंट चलती रही तो एम्. एल. ए.,
एम्. पी. तो अपने आप पैदा होते रहेगे। उनका यह
भी का मानना था कि यह स्वाभिमान का आन्दोलन स्वयं के मानव
एवं वित्तीय संसाधन से लड़ा जाना चाहिए। यह अपने आप मे
स्वनिर्भर एवं स्वतंत्र होना चाहिए। अन्यथा अगर आप दुसरे
का सहारा लेते है तो उसका इशारा मानना पड़ेगा...उन्होंने
नारा दिया की जिसकी जितनी संख्या भारी-
उसकी उतनी हिस्सेदारी..उनका मानना था कि राजनीति में सफलता के
लिए गैर-राजनीतिक जड़ होना जरुरी है
कांशीरामजी कहते थे,
"मै महाराष्ट्र के महारो से ज्यादा
उ.प्रदेश के चमारो को मानता हु
जिन्होंने फुले शाहू आंबेडकर की
विचारधारा पर विश्वास रखा और
अपनी सरकार बनाली
महाराष्ट्र के महार फुले शाहू आंबेडकर के भक्त है अनुयायी
नहीं है जिस दिन ये
फुले शाहू आंबेडकर की विचारधारा
पर विश्वास रखकर अनुकरण करना
शुरू कर देंगे मै दावे से कहता हु
विधायक, सांसद मामूली बात है
वो यहाँ के मिनिस्टर बन सकते है
और अपनी खुदकी बहुजनों की सरकार बना सकते है...!
परिषद "
पत्रकार - कांशीरामजी से प्रश्न पुछा " आप
महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता मानते है
या नहीं मानते ?"
कांशीराम साहब - मोहनदास करमचंद
गांधीने जिसका भला किया होगा वह उन्हें
महात्मा माने या भगवान माने इसमें मुझे कोई
लेनादेना नहीं है । लेकिन जिस मोहनदास
करमचंद गांधी ने मेरे बहुजन समाज
का सत्यानाश ही सत्यानाश किया है इसे मै
कदापि महात्मा नहीं मानूंगा।"
पत्रकार - तो क्या आपकी सरकार केंद्र में आने
के बाद आप गांधीजी का सन्मान नहीं करेंगे ?
कांशीरामजी - " गांधी का सन्मान
तो उतना ही करूँगा, जितना सन्मान इन्होने
डॉ बाबासाहब आंबेडकर का किया है । और
इन्होने जितना अपमान डॉ बाबासाहब
आंबेडकर का किया है उससे दुगना अपमान मै
गांधी का करूँगा ।
पत्रकार - उन्होंने तो आंबेडकर के नाम
की यूनिवर्सिटी दी है और आप कहते है
की इन्होने आंबेडकर का सन्मान नहीं किया।
कांशीरामजी - कांग्रेसने सेंटर में आंबेडकर के
नाम से यूनिवर्सिटी दी है। लेकिन
महाराष्ट्र के लोग 18 साल से महाराष्ट्र के
मराठवाडा में डॉ बाबासाहब आंबेडकर के
नाम की यूनिवर्सिटी मांग रहे है, लेकिन
अभी तक नहीं दी गई है। यह आंबेडकर का 18
साल से हो रहा अपमान नहीं तो और क्या है।
इसीलिये मेरी सरकार अगर केंद में आती है
तो सबसे पहले गाँधी को " भारत रत्न "
की ख़िताब दूंगा जो की कॉंग्रेसने
गाँधीको अभी तक भारतरत्न का सन्मान
नहीं दिया है । और मनु, शंकराचार्य और
गाँधी के भारत के गावगाव में पुतले लगवाकर
उन पुतले के निचे लिखूंगा की, " यही वे तिन
चोर बदमाश है जिन्होंने बहुजन समाज
का सत्यानाश ही सत्यानाश किया है ।"
पत्रकार परिषद् में कांशीरामजी ने ऐसा कहते
ही हॉल में उपस्थित सभी पत्रकार गुस्से
उठकर खड़े हो गये और आगे के कोई भी प्रश्न न
पूछते हुए, चाय नाश्ता ना लेते हुए पत्रकार
परिषद में से उठकर चल दिए और इस
तरहा पत्रकार परिषद समाप्त हुई।
मान्यवर कांशी राम साहेब मानना था कि एम्. एल. ए., एम्. पी.
बनाना ज्यादा जरुरी नहीं है. बाबा साहेब आंबेडकर के मूवमेंट
को चलाना ज्यादा जरुरी है. अगर मूवमेंट चलती रही तो एम्. एल. ए.,
एम्. पी. तो अपने आप पैदा होते रहेगे। उनका यह
भी का मानना था कि यह स्वाभिमान का आन्दोलन स्वयं के मानव
एवं वित्तीय संसाधन से लड़ा जाना चाहिए। यह अपने आप मे
स्वनिर्भर एवं स्वतंत्र होना चाहिए। अन्यथा अगर आप दुसरे
का सहारा लेते है तो उसका इशारा मानना पड़ेगा...उन्होंने
नारा दिया की जिसकी जितनी संख्या भारी-
उसकी उतनी हिस्सेदारी..उनका मानना था कि राजनीति में सफलता के
लिए गैर-राजनीतिक जड़ होना जरुरी है
कांशीरामजी कहते थे,
"मै महाराष्ट्र के महारो से ज्यादा
उ.प्रदेश के चमारो को मानता हु
जिन्होंने फुले शाहू आंबेडकर की
विचारधारा पर विश्वास रखा और
अपनी सरकार बनाली
महाराष्ट्र के महार फुले शाहू आंबेडकर के भक्त है अनुयायी
नहीं है जिस दिन ये
फुले शाहू आंबेडकर की विचारधारा
पर विश्वास रखकर अनुकरण करना
शुरू कर देंगे मै दावे से कहता हु
विधायक, सांसद मामूली बात है
वो यहाँ के मिनिस्टर बन सकते है
और अपनी खुदकी बहुजनों की सरकार बना सकते है...!
No comments:
Post a Comment